कभी लहलाहते खेत में फसलों के बीच पीली सरसों सा फूला है ये मन, कभी लहलाहते खेत में फसलों के बीच पीली सरसों सा फूला है ये मन,
मन के भीतर हमारे कहां ये झांक पाता है। मन के भीतर हमारे कहां ये झांक पाता है।
जात पात और धर्म बैठे तराजू की एक ओर हैं, समझ नहीं आता दूसरी ओर बैठा कौन है। जात पात और धर्म बैठे तराजू की एक ओर हैं, समझ नहीं आता दूसरी ओर बैठा कौन है।
वो दिन कौन सा होगा जब तेरी आत्मा लिबास बदलेगी वो दिन कौन सा होगा जब तेरी आत्मा लिबास बदलेगी
उम्र का सूरज अब, ढलान पर जा रहा है। लगता है कि बुढ़ापा आ रहा है। उम्र का सूरज अब, ढलान पर जा रहा है। लगता है कि बुढ़ापा आ रहा है।
कविता है तो कवि है ,कवि है तो कविता जीवन की लय समझाती है जीवन सरिता। मधुरिम मधुरिम कविता है तो कवि है ,कवि है तो कविता जीवन की लय समझाती है जीवन सरिता। म...